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क्या पौड़ी, अल्मोड़ा और टिहरी में भी मिल सकता है जौनसार-चकराता जैसी सफलता का राज़?

उत्तराखंड के जौनसार-चकराता क्षेत्र की सफलता की कहानियां राज्यभर में चर्चा का विषय बनी हुई हैं। इस क्षेत्र में ‘Tribe Status’ होने की वजह से यहाँ के निवासियों को विशेष लाभ मिलते हैं। इसका नतीजा यह है कि एक ही गांव में तीन IAS अधिकारी और अधिकांश सरकारी पदों पर स्थानीय लोग काबिज़ हैं। सरकारी नौकरियों में इतनी बड़ी सफलता का राज़ इस क्षेत्र के अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा है, जो उन्हें शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की सुविधाएं देता है।

जौनसार-चकराता के इस प्रभावशाली रिकॉर्ड को देखते हुए सवाल उठता है कि क्या पौड़ी, अल्मोड़ा, टिहरी जैसे गढ़वाल और कुमाऊं के अन्य जिलों में भी ऐसा कुछ संभव है? ये क्षेत्र उत्तराखंड के अन्य हिस्सों से भिन्न हैं, जहां जनजातीय दर्जा नहीं है, और यहां के लोगों को सरकारी सुविधाओं में आरक्षण जैसी विशेष सुविधाएं नहीं मिल पातीं।

पौड़ी, अल्मोड़ा और टिहरी जैसे जिलों के लोगों में भी शिक्षा के प्रति रुझान और सरकारी नौकरियों में जाने की चाहत होती है, लेकिन जौनसार-चकराता की तरह विशेष सुविधाओं की कमी उन्हें पीछे छोड़ देती है। कई युवा, जो कठिन परिश्रम से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, आरक्षण के अभाव में अक्सर कठिनाइयों का सामना करते हैं।

हालांकि, पौड़ी, अल्मोड़ा और टिहरी के निवासियों की मेहनत और लगन किसी से कम नहीं है। यहाँ से भी कई प्रतिभाशाली छात्र और युवा विभिन्न प्रशासनिक और सरकारी पदों पर अपनी जगह बना चुके हैं। लेकिन यह भी सच है कि जौनसार-चकराता की तरह अगर इन्हें भी विशेष सुविधाएं मिलतीं, तो इन क्षेत्रों में भी सरकारी अधिकारी बनने की दर काफी अधिक हो सकती थी।

इस विषय पर अब राज्य स्तर पर चर्चा होनी चाहिए ताकि सभी जिलों के योग्य उम्मीदवारों को समान अवसर मिल सके।

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