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उत्तराखंड के शहरी इलाकों में सीवेज नेटवर्क की स्थिति चिंताजनक, 24 साल बाद भी 77 शहरों में नहीं है सीवेज व्यवस्था

राज्य गठन के 24 वर्षों बाद भी उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों में सीवेज नेटवर्क की स्थिति गंभीर बनी हुई है। शहरी विकास के लिए केंद्र और राज्य सरकारें ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन पर जोर दे रही हैं, लेकिन उत्तराखंड के 77 शहरों में अभी तक सीवेज नेटवर्क की कोई व्यवस्था नहीं है। यह न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।

उत्तराखंड के शहरी विकास विभाग ने नमामि गंगे जैसी परियोजनाओं के तहत नदियों में गंदगी रोकने के प्रयास किए हैं, लेकिन इन योजनाओं का असर शहरी क्षेत्रों में बहुत कम दिखाई देता है। राज्य के 28 शहरों में सीवेज नेटवर्क आंशिक रूप से स्थापित है, लेकिन यह भी पूरी तरह से सक्षम नहीं है।

शहरी क्षेत्रों में सफाई की इस स्थिति के कारण पर्यावरण के लिए गंभीर चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं। उत्तराखंड की अधिकांश भूमि (71.05 प्रतिशत) वन क्षेत्र से आच्छादित है और गंगा-यमुना जैसी महत्वपूर्ण नदियों का उद्गम स्थल है, ऐसे में स्वच्छता और जल स्रोतों की सुरक्षा के लिए सीवेज नेटवर्क का विकास आवश्यक है। राजधानी देहरादून सहित 11 नगर निगम क्षेत्रों में भी यह नेटवर्क पूरी तरह से स्थापित नहीं हुआ है।

सरकार का दावा है कि अगले साल ऋषिकेश और हरिद्वार को सीवेज नेटवर्क से जोड़ा जाएगा, लेकिन इस दिशा में प्रगति धीमी है। विशेषज्ञों के अनुसार, राज्य के सभी शहरी क्षेत्रों में सीवेज नेटवर्क स्थापित करने के लिए 20 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है, जो कि राज्य के सीमित आर्थिक संसाधनों के कारण एक बड़ी चुनौती है। सरकार अब चरणबद्ध तरीके से सीवेज नेटवर्क का विकास करने और गहन अध्ययन करने का निर्णय ले रही है।

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