उत्तराखंड में पंचायत चुनाव टले, परिसीमन और मतदाता सूची की प्रक्रिया में देरी
उत्तराखंड में इस वर्ष त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव होने की संभावना समाप्त हो गई है। पंचायत निदेशालय ने पंचायत चुनावों के संबंध में अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी है, जिसमें अगले साल फरवरी-मार्च से पहले चुनाव कराने की संभावना नहीं दिखाई दे रही है। रिपोर्ट के अनुसार, पंचायत चुनाव में देरी की मुख्य वजह परिसीमन, शहरी निकायों के विस्तार, और मतदाता सूची का पुनरीक्षण है।
परिसीमन के बाद सीटों में बदलाव
प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायतों के लिए हरिद्वार को छोड़कर सभी जिलों में ग्राम, क्षेत्र, और जिला पंचायतों का परिसीमन किया गया है। इस प्रक्रिया के तहत ग्राम पंचायतों की संख्या 7,796 से बढ़कर 7,823 हो गई है, जबकि ग्राम पंचायत वार्डों की संख्या 59,219 से 59,357 तक पहुंच गई है। इसी तरह, जिला पंचायत की सीटें 385 से 389 हो गई हैं, जबकि क्षेत्र पंचायतों की संख्या 3,162 से घटकर 3,157 हो गई है। इसके अलावा, कुछ ग्राम पंचायतों को शहरी निकायों में शामिल किया गया है, और कुछ निकायों से बाहर कर दिया गया है।
चुनाव प्रक्रिया में देरी के कारण
पंचायती राज विभाग के अनुसार, चमोली, चंपावत, नैनीताल, और ऊधमसिंह नगर के कुछ हिस्सों में नए सिरे से परिसीमन की आवश्यकता है, जिसके कारण सीटों में बदलाव हो सकता है। इसके साथ ही, मतदाता सूची का पुनरीक्षण अगले साल जनवरी तक किया जाएगा, जिसके बाद ही चुनाव संभव हो पाएंगे। इससे यह तय हो गया है कि पंचायत चुनाव अगले साल फरवरी-मार्च के बाद ही आयोजित किए जा सकेंगे।
कार्यकाल बढ़ाने का कोई प्रावधान नहीं
पंचायती राज अधिनियम में पंचायतों के कार्यकाल को बढ़ाने का कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि, सरकार आवश्यकता पड़ने पर अधिकतम छह महीने के लिए प्रशासक नियुक्त कर सकती है। इसके साथ ही, सरकार ‘एक राज्य, एक पंचायत चुनाव’ के सिद्धांत को लागू करने के लिए 2027 तक 12 जिलों में पंचायत चुनाव कराने की योजना पर भी विचार कर रही है।
इस खबर से स्पष्ट है कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं के कारण इस वर्ष पंचायत चुनाव नहीं हो पाएंगे, जिससे राज्य की पंचायत व्यवस्था में देरी होगी।