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बिंदाल नदी: सफाई की बजाय ढकने का फैसला कितना सही?

देहरादून की बिंदाल नदी, जो कभी शहर की प्राकृतिक धरोहर थी, अब एक नाले में तब्दील हो गई है। जहां इसके पुनरुद्धार और सफाई की उम्मीद थी, वहां सरकार और एमडीडीए (मुस्सूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण) ने नदी को ढकने का फैसला लिया। इस कदम ने न केवल पर्यावरणविदों और स्थानीय निवासियों को निराश किया है, बल्कि यह भी सवाल उठाया है कि क्या यह समस्या का समाधान है या महज एक अस्थायी उपाय।

बिंदाल नदी, देहरादून की एक महत्वपूर्ण जलधारा हुआ करती थी, जो यहां के पर्यावरण और जल संतुलन में अहम भूमिका निभाती थी। लेकिन समय के साथ यह नदी कूड़े-कचरे और गंदे पानी के नाले में बदल गई। ऐसे में शहरवासियों को उम्मीद थी कि सरकार और स्थानीय प्रशासन इस नदी की सफाई और पुनरुद्धार के लिए ठोस कदम उठाएंगे। लेकिन इसके विपरीत, नदी को ढकने का निर्णय लिया गया, जिससे यह संकट और गहराता दिखाई देता है।

नदी को ढकने से उसके असली स्वरूप और पर्यावरणीय महत्त्व को नुकसान पहुंचता है। यह कदम न केवल नदी की जैव विविधता को खतरे में डालता है, बल्कि यह प्रदूषण की समस्या को भी स्थायी रूप से हल नहीं करता। विशेषज्ञों का मानना है कि नदी को ढकने से उसके पानी का बहाव और शुद्धिकरण प्रक्रिया बाधित होगी, और यह भविष्य में अधिक प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।

इसके बजाय, सरकार को चाहिए था कि वह बिंदाल नदी की सफाई, कचरा प्रबंधन और पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करे। नदी के किनारों को साफ कर, गंदगी के प्रवाह को रोकना और जल पुनर्चक्रण की व्यवस्था करना एक बेहतर समाधान हो सकता था।

कुल मिलाकर, बिंदाल नदी को ढकने का फैसला शहर के पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक अल्पकालिक समाधान हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह समस्याओं को बढ़ा सकता है।

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